29 मई को ही केरल में आ सकता है मानसून, इस साल होगी अच्छी बारिश: IMD

The 30th International Agricultural Exhibition AGRO 2018 will take place from June 6 to 9, 2018, in Kiev, Ukraine.

2018 edition of Agrovision will be held at Reshimbagh Ground, Nagpur starting on 23rd November. It is a 4 day event organised by MM ACTIV Sci-Tech Communications India

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22 May 2018 / 1:20 PM

3 Farmers Who Prove Smart Agriculture Can Make You Rich

Drought! Loans! Untimely rains! Low market prices! It often seems like farmers have endless suffering in their lives.
Perhaps that’s one of the reasons why none of us wants our kids to become a farmer. Instead, we all want them to immerse themselves in law or medical books so they can make their careers a big success.
But are these career options the only way to be successful? Definitely not. This Kisan Diwas, let’s see why even farming too can be quite rewarding – both mentally and financially. Here are five people in India who prove this to be true:

1.Sachin Kale:

Sachin is a mechanical engineer from Nagpur who started his career by working at a power plant and rapidly rose to the top over the years. In 2013, Sachin left his luxurious life in Gurgaon, where he was working as a manager for Punj Lloyd and getting a hefty salary of Rs 24 lakh per annum. He shifted to Medhpar to become a farmer.
Talking about challenges, Sachin says: “Everything was a challenge, as I had absolutely no clue about farming. I had to learn everything from tilling the land to sowing the seeds.”
Sachin invested his 15-year-old provident fund in setting up a clean energy model where his farm was useful all year round and gave a maximum of profit.
In 2014, Sachin launched his own company, Innovative AgriLife Solutions Pvt. Ltd., which helped farmers with the contract farming model of farming. Today, Sachin’s company is helping 137 happy farmers working on 200 acres of land and drawing a turnover of approximately Rs 2 crore.


सचिन जो कि बिलासपुर के रहने वाला है। पहले गुड़गांव की एक कंपनी में नौकरी करते थे, लेकिन उनको ये नौकरी रास नहीं आई। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और घर लौट गए। अगर हम अब की बात करें तो अब सचिन युवाओं के लिए मिसाल बन गए हैं।

सचिन ने कांट्रेक्ट पर खेती करने के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद 2014 में 'इनोवेटिव एग्रीलाइफ सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड' नाम की कंपनी शुरू कर दी। ये कंपनी किसानों को खेती करने में मदद करती है। किसानों को खेती करने में कोई परेशानी न हो, इसके लिये उन्होंने सलाहकारों को नौकरी पर रखा और उन्हें ट्रेनिंग देकर अपना बिजनेस बढ़ाना शुरू किया।

सचिन के परिवार वाले चाहते थे कि उनका बेटा इजीनियर बने। परिवार वालों का सपना पूरा करने के लिये साल 2000 में नागपुर के इंजिनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजिनियरिंग में बीटेक किया। बाद में सचिन ने फाइनेंस में एमबीए भी किया। इतनी शिक्षा लेने के बाद सचिन को एक पावर प्लांट में नौकरी मिल गई।


सचिन के पास 25 बीघे खेत था लेकिन सचिन इस बात से बिल्कुल अंजान थे कि ऐसी कौन सी फसल उगाई जाए, जिससे अच्छा मुनाफा हो। कुछ दिन खेती करने के बाद सचिन को महसूस हुआ कि सबसे बड़ी समस्या मजदूरों की है। उस समय बिलासपुर के मजदूर पैसा कमाने के लिये शहर की ओर जा रहे थे। सचिन ने सोचा कि अगर उतना पैसा वो इन मजदूरों को यहीं पर देंगे तो ये मजदूर बाहर नहीं जाएंगे और इस तरह से उनका काम भी चल जाएगा और मजदूरों का भी।

इतना ही नहीं सचिन ने मजदूरों के साथ-साथ अपने गाँव के किसानों का भी भला सोचना शुरू किया। उन्होंने किसानों की जमीन किराये पर ली और किसानों के बताए तरीके से खेती कराने लगे। इसके लिए सचिन ने 15 साल का पीएफ तुड़वाया।तो ऐसे सचिन की मेहनत रंग लाई और उनका आइडिया सफल हो गया।

सचिन ने इसके साथ ही अपने 25 बीघे वाले खेतों में धान और सब्जी की खेती करनी शुरू कर दी। उससे भी उन्हें फायदा होने लगा। सचिन को देखकर बाकी किसान भी आकर्षित हुए और अपनी खेती में उन्हें पार्टनर बनाने लगे। आज सचिन की कंपनी लगभग 137 किसानों की 200 से ज्यादा एकड़ जमीन पर खेती करती है और उनकी कंपनी साल में लगभग 2 करोड़ का टर्नओवर करती है।

सरकारी नौकरी छोड़ रेगिस्तान में की ऐलोवेरा की खेती, बन गया करोड़पति

2.Harish Dhandev:

Harish left his government job to take up Aloe Vera farming in Rajasthan – which proved highly successful, earning him crores.
Once he decided to farm on his ancestral land in Jaisalmer, one of the first things that Harish did was to get his soil tested by the agricultural department.
Harish’s initial 80,000 saplings quickly grew in number to seven lakh. Within six months Harish managed to get ten clients for his Aloe Vera within Rajasthan itself. But soon discovered that they, in turn, were selling the extracted pulp at much higher prices. So he trained his farm labourers to extract the pulp, giving them all some extra income.
Over the years, Harish has bought more land and now grows Aloe Vera over a hundred acres. His company, Dhandev Global Group, is located in Dhaisar, 45 kilometres from Jaisalmer in Rajasthan and his turnover ranges between Rs. 1.5 to 2 crore.

कृषि प्रधान भारत देश में एक और जहां किसान खेती से परेशान होकर आत्महत्या कर रहे हैं वहीं दूसरी और जैसलमेर के हरीश धनदेव ने सरकारी नौकरी छोड़कर खेती करने का फैसला लिया। जहां हर कोई सरकारी नौकरी पाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहा है वहीं जैसलमेर में रहने वाले म्युनिसिपल काउंसिल में जूनियर इंजीनियर रह चुके हरीश धनदेव ने कृषि के क्षेत्र में कुछ अलग करने की चाहत में अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और करोड़पति बन गए हैं.
एक किसान परिवार से होने के कारण हरिश धनदेव खेती के क्षेत्र में कुछ अलग करना चाहते थे। हरीश के मुताबिक, नौकरी करने के कुछ समय बाद उनका मन कुछ अलग करने का हुआ। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और खेती की और कदम बढ़ा दिए। हालांकि उनके पास जमीन थी लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या खेती की जाए। इसके बाद वो एक दिन दिल्ली के एग्रिकल्चर एक्स्पो में गए थे, तब से उनकी जिंदगी ने करवट ले ली। एग्री एक्स्पो से उनको कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली। हरीश धनदेव सरकारी नौकरी छोड़क अपनी 120 एकड़ जमीन में ऐलोवेरा की खेती और बाकी फैसलों की खेती करने लगे। हरीश धनदेव ने 'नचरेलो एग्रो' नाम की एक अपनी कंपनी भी खोली है। यह कंपनी भारी मात्रा में पतंजली को एलोवेरा सप्लाई करती है.
अभी हरिश की खेती से सालाना कमाई 1.5 से 2 करोड़ रुपए की है। जैसलमेर से 45 किमी. दूर दहिसर में उन्होंने अपनी एक कंपनी 'नचरेलो एग्रो' भी स्थापित कर दी है। थार मरुस्थल में उपजे ये ऐलोवेरा बड़ी मात्रा में बाबा रामदेव के पतंजलि फूड प्रोडक्ट्स लिमिटेड को ऐलोवेरा जूस बनाने के लिए सप्लाई किए जाते हैं.

3.Vishwanath Bobade:

A farmer from Bahirwadi, Vishwanath’s village is in the drought-prone Beed district of Maharashtra. However, he has earned Rs 7 lakh from farming on just one acre of land!
Vishwanath decided to give multi-cropping a try, and he also figured out that he could increase his crop by building a wire fence and planting creepers and climbers on them.
Vishwanath also installed a pipeline with his first-year profits to ensure sprinklers watered his plants. He has also picked up farming methods like raised-bed farming and mulching over the years, which has proved to be beneficial.
Indeed, Vishwanath takes help of only two labourers at his farm. He and his wife work day and night to take care of the plants and hence the cost of production is less, giving them better profits.

दुष्काळ, निसर्गाची अवकृपा, नापिकी, दर आदी विविध कारणांमुळे शेतीत अनेक शेतकरी हतबल झालेले दिसतात. या पार्श्वभूमीवर बीड शहराजवळील बहिरवाडी येथील विश्वनाथ बोबडे यांनी सर्व प्रतिकूल परिस्थितीवर मात करत एक एकरातून उन्नती साधली आहे. वर्षभरातले तीन हंगाम व त्यात सुमारे सहा ते सात पिके कुशलतेने घेत आर्थिक उत्पन्नाची घडी त्यांनी सुस्थितीत नेली आहे.

बीड हा दुष्काळी जिल्हाच समजला जातो. बीड शहराच्या परिसरातील बहिरवाडी येथील विश्वनाथ बोबडे यांची बीडलगतच साडेपाच एकर जमीन होती. मात्र नवीन बाजार समितीच्या उभारणीसाठी त्यांची चार एकर जमीन गेली. त्यामुळे तिथे एक एकरच जमीन राहिली. बाजार समितीकडून संपादीत जमिनीच्या मोबदल्यातून त्यांनी शिरापूर (ता. शिरूर कासार) येथे तीन एकर जमीन खरेदी केली. मात्र बीडमध्ये घर असल्याने तेथील जमीन कसण्याची वेगळी कसरत सुरू झाली. अर्थात कष्ट व प्रयोगशील वृत्ती जपल्याने ते अशक्य नव्हते.

एक एकरातील भाजीपाला शेती
शहरानजिक असलेल्या एक एकरात मात्र नवीन काय करता येते का याचा विचार बोबडे यांच्या मनात घोळू लागला. क्षेत्र मर्यादीत असले तरी एकावेळी जादा पिके घेता यावीत, असे नियोजन त्यांनी केले. त्यासाठी २०१३ मध्ये संपूर्ण शेतीला लोखंडी अँगल आणि तारेचे ‘फाउंडेशन’ तयार केले.

पाण्याची व्यवस्था
बीड शहरातून बिंदूसरा नदीचे पाणी वाहते. त्याचाच उपयोग बोबडे यांनी केला. नदीपासूनच अगदी जवळ त्यांनी विहीर घेतली. तेथून दोन किलोमीटर अंतरावर पाइपलाइन करून त्याचे पाणी शेतात आणले. पाण्याची शाश्वती झाल्याने विविध पिकांचा विचार करणे शक्य झाले. ठिबकच्या माध्यमातून पिकांना हे पाणी देण्याची व्यवस्था केली. त्यामुळे कडक उन्हाळ्यात आणि दुष्काळातही बोबडे यांची शेती भाजीपाला पिकांनी बहरलेली असते.

असे आहे वर्षभराचे पीक नियोजन

  • वर्षभरातील तीन हंगामात सुमारे सहा ते सात पिके
  • यात मेमध्ये टोमॅटो, दोडका, कारली यांची लागवड. ही पिके आॅगस्टनंतर सुरू होतात.
  • सप्टेंबर, आॅक्टोबरमध्ये भेंडी, कारले आदी पिके.
  • जानेवारी-फेब्रुवारीत खरबूज, कलिंगड
  • दोन हंगामात फ्लॉवर

नियमित उत्पन्न देणारी शेती
बोबडे यांनी मार्केट अोळखून त्यानुसार पिकांची आखणी केली आहे. बहुतांश पिकांसाठी बेड (गादीवाफा) पद्धतीचा व पॉली मल्चिंगचा वापर केला जातो. दोन बेडमधील अंतर सहा फुटांचे असते. बेडवर टोमॅटो, दोडका अशी पिके असतात. तर मधल्या जागेत फ्लॉवरसारखे पीक असते. त्यात या पिकाची सुमारे पाच हजार झाडे बसतात. यंदा या पिकापासून त्यांना ५५ हजार रुपयांचे उत्पन्न मिळाले आहे.

टोमॅटोचे एकरी एकहजार क्रेट पर्यंत उत्पादन मिळते. वर्षभरात सर्व पिकांचे मिळून सुमारे पाच ते सहा लाख रुपयांचे उत्पन्न मिळते. कलिंगडाचे एकरी ३० टनांपर्यंत उत्पादन मिळते. कलिंगड व खरबूज पीकपद्धतीतून अडीच लाख रुपयांचे उत्पन्न मिळते. अन्य कोणत्याही पिकांमधून या भाजीपाला पीकपद्धतीप्रमाणे उत्पन्न शक्य नसल्याचे बोबडे म्हणाले. कारली, दोडका ही पिके हिवाळ्यात येत असल्याने त्यांना दर चांगले मिळतात. उदा. भेंडी, कारले यांना किलोला ५० रुपये तर दोडक्याला किलोला ३० रुपयांपासून ६० ते ७० रुपयांपर्यंत दर मिळतो.

बाजारपेठ केवळ दोन किलोमीटवरवर असल्याचा फायदा असा होतो, की तोडणी केलेला ताजा माल केवळ काही कालावधीत पोचता करता येतो. ताज्या व दर्जेदार मालाला किलोमागे काही रुपये जास्तीचेही मिळतात. वेगवेगळ्या हंगामात पिके असल्याने प्रत्येक हंगामात ताजे उत्पन्न हाती येते. प्रत्येक पिकासाठी साधारणतः ५० हजार रुपयांचा खर्च होतो. फ्लॉवरचे डिसेंबरच्या काळात उत्पादन जास्त येते. मात्र या काळात मागणी कमी राहते. याउलट दुसऱ्या हंगामात त्याचे उत्पादन कमी मात्र मागणी चांगली राहते असा बोबडे यांचा अनुभव आहे.

ठिबकद्वारे खतमात्रा
ठिबकद्वारेच खते दिली जातात. त्याचबरोबर एचटीपी पंप, स्प्रे गन यांचा वापर केला जातो. बोबडे दांपत्य पूर्णवेळ भाजीपाला शेतीत राबते. केवळ दोन मजुरांचे साह्य घेतले जाते. त्यामुळे शेतातील खर्च कमी करणे शक्य झाले आहे.

अॅग्रोवनमधून भेटते माहिती
बोबडे यांचे वाचन आणि गणित पक्के आहे. ते अॅग्रोवनचे नियमित वाचन करतात. त्यातून बाजारपेठ, दर आणि तंत्रज्ञानाची माहिती होते. त्याचा उपयोग शेती नियोजनात होतो.

संपर्क : विश्वनाथ बोबडे- ९७६३३७२८५७

Source: DainikSavera,thebetterindia,agrowon

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