Livestock rearing is principal source of income for 3.7% of the agricultural households: Economic Survey 2018-19

Livestock population in India rises 4.6 per cent to nearly 536 million, shows census

The livestock population in India has increased by 4.6%, from 512 million in 2012 to nearly 536 million in 2019.

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9 December / 11:11 AM

Livestock Fodder

साइलेज


हरे चारे को हवा की अनुपस्थिति में गड्ढे के अन्दर रसदार परिरक्षित अवस्था में रखनें से चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है जो हरे चारे का पीएच कम कर देता है तथा हरे चारे को सुरक्षित रखता है। इस सुरक्षित हरे चारे को साईलेज (Silage) कहते हैं.
अधिकतर किसान भूसा या पुआल का उपयोग करते हैं जो साईलेज की तुलना में बहुत घटिया होते हैं क्योंकि भूसा या पुआल मे से प्रोटीन, खनिज तत्व एवं उर्जा की उपलब्धता कम होती है.

साईलेज बनाने के लिए फसलों का चुनाव:

दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, जई, बाजरा आदि साईलेज बनाने के लिए उतम फसले हैं क्योंकि इनमेंकार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधधिक होती है. कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से दबे चारे में किण्वन क्रिया तीव्र होती है. दलहनीय फसलों का साइलेज अच्छा नहीं रहता परन्तु दलहनीय फसलों को दाने वाली फसलों के साथ मिलाकर साईलेज बनाया जा सकता है. अन्यथा शशीरा या गुड़ के घोल का उपयोग किया जाए जिससे लैक्टिक अम्ल की मात्रा बढाई जा सकती है.

साईलेज बनाने के लिए फसल की कटाई की अवस्था :

दाने वाली फसलों जैसे मक्का, ज्वार, जई आदि को साईलेज बनाने के लिए जब दाने दूधि्या अवस्था हो तो काटना चाहिए, इस समय चारे में 65-70 प्रतिशत पानी रहता है। अगर पानी की मात्रा अधिक है तो चारे को थोडा सुखाा लेना चाहिए.

साईलेज के गड्ढों के लिए जगह का चुनाव:

साईलेज बनाने के लिए गड्ढो के लिए जगह का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है
  • गड्ढे हमेशा उॅंचे स्थान पर बनाने चाहिए जहां से वर्षाा के पानी का निकास अच्छी तरह हो सके.
  • भूमि में पानी का स्तर नीचे हो.
  • साईलेज बनाने का स्थान पशुशााला के नजदीक हो.
  • गड्ढे बनाना

    साईलेज बनाने के लिए गड्ढे कई प्रकार के होते हैं। गॉंवों में साईलेज बनाने के लिए खत्तियॉं काफी सुविधाजनक और उपयोगी होती है। गड्ढो का आकार उपलब्ध चारे व पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है। गड्ढों के धरातल में ईंटों से तथा चारों और सीमेंट एवं ईंटो से भली भांति भराई कर देनी चाहिए जहॉं ऐसा सम्भव न हो सके वहॉं पर चारों और तथा धरातल की गीली मिटटी से खुब लिपाई कर देनी चाहिए। और इनके साथ सूखे चारा की एक तह लगा देनी चाहिए या चारों और दीवारों के साथ पोलीथीन लगा दें.

    गड्ढो को भरना तथा बन्द करना:

    जिस चारे का साईलेज बनाना है उसे काट कर थोडी देर के लिए खेत में सुखाने के लिए छोड देना चाहिए। जब चारे में नमी 70 प्रतिशत के लगभग रह जाये उसे कुट्टी काटने वाली मशीन से छोटे-छोटे टुकडों में काट कर गड्ढों में अच्छी तरह दबाकर भर देना चाहिए। छोटे गड्ढों को आदमी पैरो से दबा सकते हैं जबकि बडे गड्ढे ट्रैक्टर चलाकर दबा देने चाहिए। जब तक जमीन की तह से लगभग एक मीटर उचॉं ढेर न लग जाये भराई करते रहना चाहिए। भराई के बाद उपर से गुम्बदाकार बना दें और पोलिथीन या सूखे घास से ढक कर मिट्टी अच्छी तरह दबा दें और उपर से लिपाई कर दें ताकि इस में बाहर से पानी तथा वायु आदि न जा सके।

    गड्ढों का खोलना:

    गड्ढे भरने के तीन महीने बाद गड्ढों को खोलना चाहिए। खोलते समय ध्यान रखें कि साईलेज एक तरफ से परतों में निकाला जाए और गडढे का कुछ हिस्सा ही खोला जाए तथा बाद में उसे ढक दें। गडढा खोलने के बाद साईलेज को जितना जल्दी हो सके पशुओं को खिलाकर समाप्त करना चाहिए। गड्ढे के उपरी भागों और दीवारों के पास में कुछ फफूंदी लग जाती है। यह ध्यान में रखें कि ऐसा साईलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।

    पशुओं को साईलेज खिलाना:

    सभी प्रकार के पशुओं को साईलेज खिलाया जा सकता है। एक भाग सूखा चारा, एक भाग साईलेज मिलाकर खिलाना चाहिए यदि हरे चारे की कमी हो तो साईलेज की मात्रा ज्यादा की जा सकती है। साईलेज बनाने के 30-35 दिन बाद साईलेज खिलाया जा सकता है। एक सामान्य पशु को 20-25 किलोग्राम साईलेज प्रतिदिन खिलाया जा सकता है। दुधारू पशुओं को साईलेज दूध निकालने के बाद खिलायें ताकि दूध में साईलेज की गन्ध न आ सके। यह देखा गया है कि बढिया साईलेज में 85-90 प्रतिशत हरे चारे के बराबर पोषक तत्व होते हैं। इसलिए चारे की कमी के समय साईलेज खिलाकर पशुओं को दूध उत्पादन बढाया जा सकता है।

    Autor: Indiaclickfind.com

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